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पथ – बाधा

 लक्ष्य मेरा है मंजिल पाना ।
              पर पथ बाधा ये जारी है ।।
असीम अनंत सी लगाती है ये ।
                 आधी सी भयकारी है ।।
डगमग नौका हिल रही और ।
         ज्वार जलधि है बढते जाते ।।
निराशा की किरणे बढ़ जाती ।
            जब ये नौका से टकराते ।।
मन बिचलित सा सोच रहा ।
            अंत समय अब आ गया ।।
जीवन की कटु रासो को ।
                   मनो की मैं पा गया ।।
आँख खुली तो बिस्तर में था ।
       और आसमा पे सूरज आया ।।
स्वप्न ज्वार ये झूठी थी ।
        मन ने बार – बार दोहराया ।।
सचमुच मन की ज्वार थी ये ।
       जीवन के कटु अनुभव का ।।
अदृश्य कल्पित डर का ।
    कल्पित करिअर उदभव का ।।
लक्ष्य कभी न मुश्किल होता ।
        चाहे कठिन जितना भी हो ।।
दृढ प्रतिज्ञा कर लो पहले , और ।
        दिल से बोलो यू हैवे तो गो ।।
बात ये मन में जैसे आयी ।
        मुख मंडल सब खिल गए ।।
उमड़े ज्वार जलधि में थे जो ।
                 वे भाटे में मिल गए ।।
अब था मैं “सैनिक” जैसा ।
            आगे बढ़ाना सपना था ।।
जो छूट गया वो अतीत है ।
      जो साथ चला वो अपना था ।।
आखिर समय वो आ गया ।
    जब मंजिल थी कदमो मे मेरे ।।
चित्त प्रसनचित हो गया ।
खुशियों की बादल दिल को घेरे ।।
अनुभव था ये सत्य सुमन का ।
    और सफलता का पाठ बड़ा ।।
इतिहास दुम दाबे था ।
    और मैं निर्भीक सा था खड़ा ।।